Friday, January 27, 2017

संजयलीला भंसाली के बहाने एक जरुरी हस्तक्षेप

हो चुकीं ग़ालिब बलाएं सब तमाम 
एक मर्ग-ए-नागहानी और है...!!

किसी भी तरह की हिंसा ख़तरनाक है. इसका समर्थन नहीं किया जा सकता. चाहे वह राजनैतिक पार्टियों द्वारा की गयी गोलबंद हिंसा हो या व्यक्ति विशेष/सेना द्वारा लामबंद गुंडागर्दी या सांप्रदायिक ताकतों द्वारा फैलाया जाने वाला धार्मिक आतंकवाद हो. सारी वजहें आम आदमी के खिलाफ़ की गयी एक ख़तरनाक साजिश हैं. लेकिन आम आदमी हमेशा से इस बार भी लाचार है. गुजिश्ता सालों में फासिस्ट ताकतों का सबसे भयानक चेहरा 1992 में बाबरी मस्जिद टूटने के बाद पहली बार देख रहा हूँ. यह लाचारी सबसे ज्यादा सीटें जीतकर आने वाली सरकार ने पैदा की हैं. आये दिन देशभक्ति के पैरामीटर बदले जा रहे हैं. लोग खुलेआम अपने ही लोगों को पड़ोसी मुल्क भेजने की बात करने लगे हैं. सरकार बनने के साथ-साथ जैसे पाकिस्तान हिंदुत्व का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल बन गया हो.  
  
हाल ही में आमिर खान, शाहरुख़ खान, करण जौहर पर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के नाम पर हमले किये गए. आज संजयलीला भंसाली पर जयपुर में करणी सेना ने हमला कर मारपीट की. फिल्म ‘पद्मावती’ के सेट पर महंगे इक्विपमेंट्स तोड़ दिए गए. ‘पद्मावती’ भंसाली की तीसरी एपिक फिल्म है. आखिर ये कौन लोग हैं जिनकी कुछ खास मौकों पर ही भावनाएं आहत होती हैं. क्या ये फासीवादी ताकतें देश की कानून व्यवस्था में यकीन नहीं रखतीं या प्रदेश सरकार इन फासीवादी ताकतों से डरती है या सरकारें ही इन्हें अपने नफे-नुकसान के लिए पालती हैं?

यहाँ प्रश्न उठना लाज़मी है कि एक फ़िल्मकार एपिक/ऐतिहासिक फिल्म निर्माण के दौरान तथ्यों/घटनाओं के रूपांतरण में छूट ले सकता है? तथ्यों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है? बीते सालों में ‘द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह’ (राजकुमार संतोषी), ‘जोधा अकबर’, ‘खेलें हम जी जान से’, ‘मोहनजोदड़ो’ (आशुतोष गोवारिकर), मिर्जया (राकेश ओमप्रकाश मेहरा), ‘बाजीराव मस्तानी’, ‘पद्मावती’ (संजयलीला भंसाली) जैसी फ़िल्में बन रही हैं. फिल्मकारों ने इन फिल्मों में जिस तरह तथ्यों को अपने तईं सुविधाजनक तरीके से तोड़-मरोड़कर पेश किया वह किसी से छुपा नहीं है. जाहिर है कि फ़िल्में फिक्शन पर आधारित होती हैं लेकिन इसके नाम पर तथ्यों और आकड़ों को मैनिपुलेट करने की कोशिश मत कीजिये. फ़िल्में हर तरह की ऑडिएंस के लिए होनी चाहिए. ‘पद्मावती’ के संबंध में जो लोग यह कह रहे हैं कि क्या आपने स्क्रिप्ट पढ़ी है...? तो शायद ये थोड़ा भावुक लोग हैं. क्यूंकि वे यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि जो ‘द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह’, ‘जोधा अकबर’, ‘खेलें हम जी जान से’, ‘मोहनजोदड़ो’, ‘मिर्जया’ या ‘बाजीराव मस्तानी’ में किया गया वह ‘पद्मावती’ में नहीं होगा. ऐसी फिल्मों की लिस्ट काफ़ी लंबी है. ये तो महज फौरी तौर पर उदाहरण भर हैं.

भंसाली पर आरोप है कि ‘पद्मावती’ फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती के बीच एक बेहद आपत्तिजनक सीन डाला है. इस सीन में अलाउद्दीन खिलजी एक सपना देखता है जिसमें वो रानी पद्मावती के साथ है. करणी सेना का दावा है कि वास्तव में खिलजी और पद्मावती ने कभी एक दूसरे को आमने सामने देखा तक नहीं और इतिहास की किसी किताब में भी इस तरह के किसी सपने का कोई जिक्र नहीं है. ये पूरी तरह भंसाली के दिमाग की उपज है. एक वाजिब सवाल यह भी है कि फ़िल्मकार एक तरफ ऐतिहासिक फिल्मों में रिसर्च के नाम पर कोई खास मेहनत नहीं करते दूसरी तरफ फिल्म एनाउंसमेंट के समय प्रेस कांफ्रेंस में ‘यह एपिक फिल्म है’ के नाम पर पब्लिसिटी करते हैं. यह एक प्रवृत्ति है जिसे फिल्म इंडस्ट्री ने एक फ़ॉर्मूले की तरह इस्तेमाल किया है. इस फूहड़ संस्कृति के खतरे अब साफ़ दिखायी देने लगे हैं.

एक अंतिम सवाल शिवसेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे), बजरंगदल या सरणी सेना के गुंडे यह डिसाइड करने वाले कौन होते हैं कि- फ़िल्मकार किस सब्जेक्ट पर फिल्म बनायेगा, या किस फिल्म में कौन कलाकार काम करेगा या किस फिल्म का कंटेंट क्या होगा या किस राज्य में फिल्म रिलीज होगी किसमें नहीं या कौन देशभक्त है कौन नहीं? सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान के समय कौन खड़ा है कौन नहीं? भाई तुम्हे किसी मुद्दे पर आपत्ति है तुम केस करो. मुजरिम को कानून दंडित करेगा कि तुम्हारे जैसे लुम्पेन? अक्सर लोग कहते हैं यू.पी. बिहार में गुंडा राज है. तो भईया महाराष्ट्र और राजस्थान में तो रामराज है न? लेकिन वहां भी तो राज ठाकरे जैसे लफंगे करण जौहर से फिल्म रिलीज के नाम पर 5 करोड़ रूपये गुंडा टैक्स वसूलने की बात करते हैं और सूबे के मुखिया निगोशिएट करवाते हैं. सरणी सेना के रणबांकुरे खुलेआम दिनदहाड़े किसी मशहूर फ़िल्मकार की पिटाई कर डालते हैं. लेकिन उनको इस बार भी शर्म नहीं आएगी. आमिर, शाहरुख़ और करण जौहर जैसे भंसाली का मामला भी रफा-दफा हो जायेगा. सरकार यूँ ही ‘सबका साथ सबका विकास’ साल-दर-साल करती रहेगी.

वंदे मातरम...!!
भारत माता की जय...!!                           

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किसी फिल्म (शूल) का मुख्य किरदार (मनोज वाजपेयी) आपसे कहे कि फला किरदार (समर प्रताप सिंह) को निभाते समय अवसाद के कारण मुझे मनोचिकित्सक के प...